जीव और प्राणी - कविता - सुधीर श्रीवास्तव - साहित्य रचना ई-पत्रिका
सतयुग त्रेता न द्वापर के हम कलयुग के प्राणी हैं। हमारा हस्त खुनी पंजे का है वे हमसे भिन्न स्वतंत्र रह पाएंगे ?
प्राणी हमसे कहते हैं,'जियो और जीने दो' इस विषय पर स्वमत प्रकट कीजिए। प्राणी हमसे कहते है सतयुग त्रेता न द्वापर के हम कलयुग के प्राणी हैं। हमारा हस्त खुनी पंजे का है वे हमसे भिन्न स्वतंत्र रह पाएंगे ? प्राणी हमसे कहते हैं जियो और जीने दो प्राणियों के प्रति अपनी करुणा का विस्तार करें हमारी संस्कृति कहती है कि सारा सृष्टि हमारा
क्रिकेट का किंग किसे माना जाता है हमारे कर्म ऐसे रहे है कि हम मानव कहलाने जिसके अंदर प्राण होता है उसे प्राणी या जीव कहते हैं।
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